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Sunday, September 27, 2009

देवेन्द्र आर्य की ग़ज़लें

इस बार गोरखपुर के देवेन्द्र आर्य जी की ग़ज़लें प्रस्तुत हैं...









Sunday, September 6, 2009

बनारस के कवि/शायर-केशव शरण

बनारस के कवि/शायर में इस बार केशव शरण की रचनाएं आप के लिये प्रस्तुत है। केशव शरण बनारस के जाने -पहचाने रचनाकार हैं। इनका जन्म 23-08-1960 को वाराणसी में हुआ, आप के पिता स्व० शिवब्रत सिंह यादव और माता का नाम श्रीमती बासमती देवी है और आप सरकारी सेवा में हैं। आप की प्रकाशित रचनाएं हैं- ‘तालाब के पानी में लड़की’, ‘जिधर खुला व्योम होता है’ [दोनों कविता-संग्रह], ‘दर्द के खेत में’ [ग़ज़ल-संग्रह] और ‘कडी़ धूप में’ [ हाइकू-संग्रह ]।






1. कौन अब है आने वाला :-

कौन अब है आने वाला ।
जा चुका है जाने वाला  ।   


हाथ मलता रह गया है,

पा न पाया पाने वाला ।


कौन उसको चुप कराये,

रो रहा है गाने वाला ।


तू तो थोडी़ दे तसल्ली,
हर कोई है ताने वाला ।


दर्द से वाकि़फ़ नहीं है,
दिल को वो समझाने वाला ।


क्या न ये उल्फ़त कराये,
काम ये दीवाने वाला ।


हो नहीं सकता है कोई,

उसके जैसा भाने वाला ।


छीन बैठा चांद मेरा,
मेघ काला छाने वाला ।


अब नहीं आबाद होगा,

मेरा घर वीराने वाला

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2. मुहब्बत के पीछे ज़माना पडा़ है :-

मुहब्बत के पीछे ज़माना पडा़ है।
मुझे प्यार अपना छुपाना पडा़ है।   


बुरा होता दुनिया को नाराज़ करना,

मुझे अपने दिल को दुखाना पडा़ है।


यहाँ आज खुशियों के लाले हुए हैं,

जहां पर ग़मों का ख़ज़ाना पडा़ है।


जो मैं रो रहा था तो कोई न रोया,
सभी गा रहे हैं तो गाना पडा़ है।


बगा़वत कहीं इससे आसान होती,
मुझे खु़द को जितना मनाना पडा़ है।


नहीं कोई विश्वास रिश्तों पे हमको,
मगर जग के नाते निभाना पडा़ है।


कहाँ तेरे आगोश में मस्त रहता,

कहाँ पस्त तेरा दीवाना पडा़ है।

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3. बयां क्या दूं सफ़र की मुश्किलों पर :-

बयां क्या दूं सफ़र की मुश्किलों पर।
ये राहें ले न जाती मंजिलों पर।
 


बिखर जाना है इनको बीहडो़ में,
भरोसा क्या करूँ मैं काफ़िलों पर। 


 मैं तनहाई का जो इल्जाम धरता,
तो जाता वो तुम्हारी महफ़िलों पर।


बहुत भारी है दिलबर को गवाना,

जमाने भर के सारे हासिलों पर।  


कोई-कोई समुन्दर में उतरता,
पडी़ रहती है दुनिया साहिलों पर।

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4. अजब मैं भी जफ़ाओं पर फ़िदा हूँ :-

अजब मैं भी जफ़ाओं पर फ़िदा हूँ।
हसीनों की अदाओं पर फ़िदा हूँ


बरसना जो नहीं कुछ जानती हैं,

उन्हीं रंगी घटाओं पर फ़िदा हूँ।
   


पुराना पेड़ सूखा जा रहा है,

अमरबेलों,लताओं पर फ़िदा हूँ।


वतन की खुश्बुएं ले जा रहीं है,

विदेशों की हवाओं पर फ़िदा हूँ।


ग़रीबी भूल जाता हूँ मैं अपनी,

अमीरी की कथाओं पर फ़िदा हूँ।


अकेलापन नहीं जाता है लेकिन,
मैं इन्दर की सभाओं पर फ़िदा हूँ


जो मायावी बदन की मालकिन है,
मैं ऐसी आत्माओं पर फ़िदा हूँ।


बढा़ ही जा रहा है मर्ज़ मेरा,

मगर तेरी दवाओं पर फ़िदा हूँ।

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 5. अभी इतिहास का वो पल नहीं :-

अभी इतिहास का वो पल नहीं आया तो आयेगा।
हमारा वो सुनहरा कल नहीं आया तो आयेगा। 


उम्मीदों के सहारे ही तो दुनिया चल रही है ये,
समस्याओं का कोई हल नहीं आया तो आयेगा।


जमाने से ये माली कह रहे हैं पेड़ अच्छा है,

अगर इस साल उस पर फल नहीं आया तो आयेगा।


डगर की शर्त पूरी है मुसाफ़िर चल पडा़ होगा,
नहर में गर लहर कर जल नहीं आया तो आयेगा।


नजूमी कह रहा है देखकर हाथों की रेखाएं,
तुम्हारा भाग्य है चंचल नहीं आया तो आयेगा।


किसी का हुश्न है मग़रूर क्या मिलना ग़रीबों से,

किसी का इश्क है पागल नहीं आया तो आयेगा।


जिसे हो देश की चिन्ता,जिसे परवाह जनता की,
कभी सरकार में वो दल नहीं आया तो आयेगा।


निवास- एस.2/564, सिकरौल,वाराणसी
मोबाइल नं०-9415295137