बनारस के शायरों में आनन्द परमानन्द का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इस बार आप इन्हीं की रचनाओं का आनन्द उठायेंगे।
आनन्द परमानन्द जी का जन्म १ मई सन १९३९ ई० को हुआ। आपके पिताजी का नाम स्व० पुरुषोत्तम सिंह तथा आपका जन्म स्थान ग्राम-धानापुर, पो०-परियरा,जिला-वाराणसी है। आप गीत ग़ज़लों के काव्यमंचों के चर्चित कवि हैं तथा आप की निबन्ध लेखन, प्राचीन इतिहास और पुरातत्व में बेहद रुचि है। आप की प्रकाशित पुस्तकें हैं :- वाणी चालीसा, सड़क पर ज़िन्दगी [ग़ज़ल संग्रह] आदि।
आनन्द परमानन्द जी का जन्म १ मई सन १९३९ ई० को हुआ। आपके पिताजी का नाम स्व० पुरुषोत्तम सिंह तथा आपका जन्म स्थान ग्राम-धानापुर, पो०-परियरा,जिला-वाराणसी है। आप गीत ग़ज़लों के काव्यमंचों के चर्चित कवि हैं तथा आप की निबन्ध लेखन, प्राचीन इतिहास और पुरातत्व में बेहद रुचि है। आप की प्रकाशित पुस्तकें हैं :- वाणी चालीसा, सड़क पर ज़िन्दगी [ग़ज़ल संग्रह] आदि।
1. ज़िन्दगी रख सम्भाल कर साथी :-
ज़िन्दगी रख सम्भाल कर साथी।
अब न कोई मलाल कर साथी।
जिनके घर रौशनी नहीं पहुँची,
उन ग़रीबों का ख्याल कर साथी।
गाँजना मत विचार के कूड़े,
फेंक दो सब निकाल कर साथी।
जिनके उत्तर तुम्हें नहीं मिलते,
अपने भीतर सवाल कर साथी।
वक्त तुमको निहारता है रोज़,
आँख में आँख डालकर साथी।
कोई तेरा नहीं ज़माने में,
मत रखो भ्रम ये पालकर साथी।
देखकर यह मिज़ाज जोखिम का,
वक्त का इस्तेमाल कर साथी।
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2. सघन कुंज की ओ!लता-वल्लरी सी :-
सघन कुंज की ओ!लता-वल्लरी सी।
सुवासित रहो भोर की पंखुरी सी।
मैं आसावरी राग में गा रहा हूँ,
तू बजती रहो रात भर बांसुरी सी।
नमित लोचना-सौम्य-सुंदर,सुअंगी,
मेरे गंधमादन की अलकापुरी सी।
महारात्रि की देवि मातंगिनी सी,
मेरी जिन्दगी है खुली अंजुरी सी।
ये यौवन,ये तारुण्य,ये शब्द सौरभ,
हो परिरम्भ की मद भरी गागरी सी।
मेरी आँख की झील में तैर जाओ,
परी देश की ओ नशीली परी सी।
तू कविता की रंगीन संजीवनी है,
सुरा-कामिनी काम कादम्बरी सी।
मैं तेरे लिये फिर से ’आनंद’ में हूँ,
न जाओ अभी रात तुम बावरी सी।
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3. अब नहीं दशरथ नहीं रनिवास है :-
अब नहीं दशरथ नहीं रनिवास है।
राम सा लेकिन मेरा बनवास है।
शुभ मुहूरत क्या पता इस देश में,
जन्म से अब तक यहाँ खरमास है।
वक़्त घसियारे के हाथों कट रही,
रात-दिन जैसे उमर की घास है।
शहर से गुस्से में आयी जो इधर,
मौत का कल मेरे घर अभ्यास है।
सभ्यता ने कल कहा ऐ आदमी,
अब तो मैंने ले लिया सन्यास है।
ज़िन्दगी शिकवा करे फुर्सत कहाँ,
हर तरफ पूरा विरोधाभास है।
क्या पता घर का लिखूँ ऐ दोस्तों,
हर गली,हर मोड़ पर आवास है।
अर्थ तो निर्भर है सचमुच आप पर,
शब्द का भावों से पर विन्यास है ।
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4. प्रगति के हर नये आयाम को वरदान कह देना :-
प्रगति के हर नये आयाम को वरदान कह देना।
नये बदलाव को इस दौर का सम्मान कह देना।
न मज़हब-धर्म, छूआ-छूत,मानव-भेद तू कहना,
अगर इतिहास पूछेगा तो बस इंसान कह देना।
कहीं जब भी चले चर्चा तुम्हारे देश गौरव की,
भले मरुभूमि है लेकिन तू राजस्थान कह देना।
बदलती मान्यताओं में कठिन संघर्ष होते हैं,
जो छूटा भीड़ में खोता है वो पहचान कह देना।
चुनावों की खुली रंजिश से हालत गांव की बिगडी़,
हैं चिंता में बहुत डूबे हुए खलिहान कह देना।
जो शासन आम जनता की हिफ़ाज़त कर नहीं सकता,
समय उसको बदल देता है ये श्रीमान कह देना।
व्यवस्था चरमराकर धीरे-धीरे टूट जाती है,
उपेक्षित हो गये शासन में यदि विद्वान कह देना।
हों जलसे या अनुष्ठानों के व्रत-पर्वों के पारायण,
खु़दा या राम कहना और हिन्दुस्तान कह देना।
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5. क्या कहूँ किन-किन परिस्थितियों में कब होता हूँ मैं :-
क्या कहूँ किन-किन परिस्थितियों में कब होता हूँ मैं।
आप यह कि हल के बैल सा जोता हूँ मैं।
खो न जाऊँ भीड़ में छोटी चवन्नी की तरह,
रोज़ खु़द को वक़्त की इस जेब में टोता हूँ मैं।
जानकर मौसम नहीं खुशियाँ उगा सकता कभी,
टूटता विश्वास फिर भी कोशिशें बोता हूँ मैं।
मुझको सहलाती है पीडा़ अपने बेटे की तरह,
जब कमी होती है अक्सर प्यार में, रोता हूँ मैं।
नम हुई आँखें तो पलकें मूंद लेता हूँ मगर,
सोचना मत ज़िन्दगी मेरी कभी सोता हूँ मैं।
फिर हैं चौकन्ना समस्यायें बहेलिये की तरह,
देखना ऐ सांस! तेरा पालतू तोता हूँ मैं।
kamaal ka tevar !
ReplyDeletekamaal k she'r !
kamaal ki ghazalen !
badhaai........................
एकदम पास के कवि से परिचय करा दिया आपने । आभार ।
ReplyDeletekavi parichay ke liye aabhaar, sabhi rachnayen prashansniya. wah wah wah.
ReplyDeleteन मज़हब-धर्म, छूआ-छूत,मानव-भेद तू कहना,
ReplyDeleteअगर इतिहास पूछेगा तो बस इंसान कह देना।
kisi ek racanaa kee kyaa taareef kroon har lafz kaabile taareef hai baut umda adbhut laajavaab rachnaayen hain aanad jee ko bahut bahut badhaaI
न मज़हब-धर्म, छूआ-छूत,मानव-भेद तू कहना,
ReplyDeleteअगर इतिहास पूछेगा तो बस इंसान कह देना।
kisi ek racanaa kee kyaa taareef kroon har lafz kaabile taareef hai baut umda adbhut laajavaab rachnaayen hain aanad jee ko bahut bahut badhaaI
Is blog ke madhyam se aapne jo pahal ki hai woh sarahniya hai.
ReplyDelete... ek se badkar ek gajal, behatreen sher !!!!
ReplyDeleteye 2 naye column shuru kar ke
ReplyDeleteaapne blog-jagat par bahut badaa ehsaan kiya hai...
yaqeenan,,sb logon ko kuchh n kuchh nayaa seekhne ko milega aur ek "samvaad" bhi qaayam ho skega.
column "aajkeashayar" theek se khul nahi rahaa hai...janaab-e-VinayMishar ji to bahut hi umdaa aur meeaari ghazalein kehte hain... un tak mera pur-khuloos aadaab pahunchaayega.
---MUFLIS---
यह बहुत अच्छा ब्लॉग है मन आनन्दित हो गया
ReplyDelete---
गुलाबी कोंपलें
तारीफ़ के लिए शब्द नहीं मील रहे साथी...
ReplyDeleteसुंदर लेखन...
बहुत अच्छा लगा...
अनवरत जारी रहे...
मीत
सारी की सारी रचनाएँ उम्दा है ,आपको प्रस्तुति हेतु बधाई चतुर्वेदी जी .
ReplyDeleteबनारस के कवि और शायर के रूप मे आपने जो पहचान बनाई है,उसके लिए आपको बधाई,
ReplyDeleteआपकी शायरी मे क्या कमाल है साथी,
एक एक लफ़्ज बेमिशाल है साथी,
हम कायल हो गये आपकी इस लेखनी के,
बस ऐसे ही करते रहिए,धमाल ये साथी.
प्रसन्न जी,
ReplyDeleteभाई आपने तो आदरणीय आनंद परमानंद जी की एक से बाद कर एक बेहतरीन ग़ज़लों की कड़ी पेश कर जो प्रसन्नता प्रदान कराई उसके परमानन्द का बयां बहुत मुश्किल है. प्रयास जरी रखें .
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
प्रसन्न वदन जी,
ReplyDeleteअपने दूसरे पड़ाव में श्री आनन्द परमानन्द जी की रचनाओं को पढवाने के लिये शुक्रिया।
(१) जिन्दगी रख सम्भाल कर साथी
सड़ी-गली / पुरातनपंथी /रूढियों ग्रस्त सोच को निकाल फेंकने की खूब कही है, दरअसल यही होना भी चाहिये :-
गाँजना मत विचार के कूड़े,
फेंक दो सब निकाल कर साथी।
(२) सघन कुंज की ओ!लता-वल्लरी सी
मैं आसावरी राग में गा रहा हूँ,
तू बजती रहो रात भर बांसुरी सी।
वाह! वाह!! वाह!!!
अभी तो और पढना शेष है.....
एक अच्छॆ प्रयास के लिये बधाई।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
कमाल की रचनाएं हैं सभी................. नया अंदाज़ है कहने का........... अद्वितीय संकलन हैं
ReplyDeleteसारी की सारी रचनाएँ उम्दा .....!!
ReplyDeleteवाह....!!!!
तारीफ़ के लिए शब्द नहीं मील रहे ....वाह....!!!!
एक से बढकर एक रचनाएँ हैं आपकी और कहने के लिए तो अल्फाज़ कम पर गए!
ReplyDeleteजिनके घर रौशनी नहीं पहुँची,
ReplyDeleteउन ग़रीबों का ख्याल कर साथी।
vah vah vah vah
चतुर्वेदी जी इस ब्लॉग के माध्यम से आपने हिंदी जगत की सच्ची सेवा की है.आप बधाई के पात्र है.
ReplyDeleteBahut sundar. Banaras ke pas Ghazipur men mera nanihal hai.Mere blog par meri bhi Picture dekhen.
ReplyDeleteप्रसन्न वदन जी, आनन्द परमानन्द जी को पढ़कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteBada behatrin blog..Ap to bahut achha karya kar rahe hain..badhai.
ReplyDelete"शब्द सृजन की ओर" के लिए के. के. यादव !!
Blog jaise maadhyam ka bahut hi saarthak pryog kar rahe hain aap. Badhai aur Shubhkaamnayein.
ReplyDeleteParmanand ji ki rachnaon se ru-ba-ru karvane ka shukriya.
"गाँजना मत विचार के कूड़े,
ReplyDeleteफेंक दो सब निकाल कर साथी।"
मुक्ति आह्वान।
सोच नहीं, चल साथी।
बढ़िया।
sach me banarsi rang .
ReplyDeletebahut badhai ho apko
ज़िन्दगी रख सम्भाल कर साथी।
ReplyDeleteअब न कोई मलाल कर साथी।
nice
kya kahen koi shabd nahi mil rahe hai par Itne urwar aur zindagi ke kareeb kavi bahut kam milte hai .... Mere shabd feeke hai aapki kavitaon ke samne
ReplyDeleteZindagi ke bilkul kareeb hai har shabd. Vah Vah koi shabd nahi mil rahe tareef ke liye .... Dhanya hai Varanasi Aap jaise kaviyon se
ReplyDeleteMERI GAZALEIN JIN KAVYA PREMIYO, SAHITYAKARO KO KUCH BHI PRABHAAVIT KAR SAKI HAI AUR JINHONE UN RACHNAAO KE PRATI APNI NISHTHAATMAK SAMIKSHAA PRASTOOT KI HAI UNHE AAJ DINAANK 3/1/2012 KO PAHALI BAAR PADNE KE BAAD NAW WARSH KI SHUBH MANGAL KAAMNA PRESHIT KAR RAHA HOON SAB K I TIPPADIYAA ACHCHHI LAGI PRIY BHAI PRASANN VADAN CHATURVEDI KO NAYE WARSH KI VISHESH MANGAL KAAMNA AUR NIVEDAN BHI KI EK BAAR AUR............MERI KUCH ANYA GAZALEIN PRASTUT KARANE KI KRIPAA KARE PLEASE CONTECT ME ON 09794163311 & EMAIL- gyanshankul@gmail.com
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